लाइब्रेरी में जोड़ें

रतनगढ - कहानी दो जहां की (भाग 12)

निहारिका बेहोश हो चुकी थी और उसको अभी भी दो हाथ थामे हुए थे। उन हथेलियों पर ग्लव्स का आवरण था। निहारिका के मासूम चेहरे पर लाल चमकीली आंखें जमी हुई थी जो धीरे धीरे अपनी रंगत खोती जा रही थी। जाने कैसा खिंचाव था निहारिका में एक अजनबी के हाथों में होते हुए भी वो उसे छू भी नहीं पा रहा था। वो बार बार अपना हाथ निहारिका के चेहरे की तरफ बढ़ाता और फिर वापस खींच लेता। 


आह…! क्या है ये? एक धीमी आवाज गूंजी। उसकी आंखे पूरी तरह सामान्य हो चुकी थीं। और वह खुद को अजीब सी कश्मकश में बंधा हुआ महसूस कर रहा था। कंधो पर उसकी पकड़ धीमी हुई और निहारिका धीरे धीरे जमीन की ओर झुकने लगी। निहारिका को थामे उस शख्स का घुटना जमीन पर टिका और उसने बैठते हुए निहारिका को पैलेस की जमीन पर लिटाया। निहारिका बेसुध पड़ी थी और वो शख्स उसे लगातार घूरे जा रहा था। या कहा जाए उसे निहार रहा था।


उसने हाथ में पहने ग्लव्स उतारे वे किस रंग के थे यह स्पष्ट नहीं हो रहा। जमीन पर पड़ी निहारिका की सांसों की गति अचानक बढ़ने लगी। शायद उसे पैलेस में घुटन महसूस हो रही थी। उस शख्स ने तुरंत अपना हाथ उसके मुंह पर रखा।जिससे उसकी आवाज वही दब कर रह गई। 


लेकिन ये क्या… वह शख्स बुरी तरह चौंक गया। उसे अपने शरीर में बदलाव महसूस हुआ जिसे देख कर उसने झटके से अपना हाथ पीछे खींच लिया। 


उसने देखा उसकी घोड़े जैसी लंबी गर्दन.. अब सामान्य हो चुकी थी।उसका धड़ उसे महसूस हो रहा था और पैर वे बिल्कुल सामान्य हो चुके थे। 


ये कैसे हुआ… हम शैतानी रूप से अपने आप इंसान बन गए कैसे…? घबराकर उसके कदम पीछे खिंच गए। और वह दीवार से सटते हुए खुद में आ रहे परिवर्तन को महसूस करने लगा। उसका जिस्म पसीने से तरबतर हो गया। जाने कितनी ही बार उसके हाथ उसके सर के बालो तक पहुंच गए।


घबराकर वो पीछे हट गया और दीवार से सट कर अपने अंदर होते परिवर्तन जो महसूस करने लगा। उसका सारा जिस्म पसीने से तरबतर हो गया। जाने कितनी ही बार उसने अपने सर को चीखते हुए पकड़ा पर उसकी चीख जाने क्यों उसके गले में ही घुट कर रह गई, जाने कितने ही हाथ पैर उसने दीवार पर बरसाए पर उसे चैन ना मिला। थोड़ी देर में उसे राहत मिलने लगी तो उसने देखा उसका पूरा रूप इंसान में परिवर्तित हो चुका।


वो यह देखकर हैरान रह गया और गौर से निहारिका को देखने लगा। आज तक उसके साथ ऐसा कभी नहीं हुआ था।उसने सोचा आखिर इस लड़की में ऐसा क्या है जो उसके छूने से ऐसा हुआ। इससे पहले भी कई लड़कियां यहां आई लेकिन कभी ऐसा कुछ क्यों नहीं हुआ, क्या यह लड़की कुछ विशेष है, या ये कुदरत का कोई इशारा है, क्या है इसका राज?


निहारिका की सांसे अब सामान्य हो चुकी थीं। शायद उस डर की वजह से आघात लगा था। वो शख्स निहारिका के पास आकर बैठ गया और उसने एक बार फिर हिम्मत करके अपने हाथ से उसके गाल को छुआ। लेकिन इस बार कुछ नहीं हुआ। उसने ऐसा दो तीन बार किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।


निहारिका के गालों को सहलाते हुए वो उसके चेहरे को निहार रहा था कि तभी निहारिका को होश आने लगा और अपने चेहरे पर कुछ रेंगता हुआ महसूस करके वो चीखते हुए उठने की कोशिश करने लगी। तभी उस शख्स ने अपनी हथेली से उसकी चीख को वहीं दबा दिया। निहारिका डर के मारे कांपने लगी और हाथ पांव चलाने लगी मगर उस शख्स की पकड़ इतनी मजबूत थी कि उस पर कोई असर नहीं हो रहा था। किंतु जब उस शख्स ने काफी देर तक कुछ नहीं किया तब वो थोड़ी सामान्य हुई और समझ गई कि यह हाथ मददगार का है।


जब उस शख्स को लगा कि अब निहारिका नहीं चीखेगी तो उसने अपना हाथ हटा लिया। निहारिका  तुरंत अपने आसपास अपने फ़ोन को तलाशने लगी, जो कुछ टाइम पहले ही छूट कर कहीं गिर गया था। वो शख्स निहारिका की बेचैनी समझने की कोशिश कर रहा था।


"आप कौन हैं?" फोन तलाशते हुए निहारिका ने पूछा।


"एक अजनबी। आपको दरवाजे के अंदर आते देखा तो आपको रुकने के लिए आवाज़ भी दी पर शायद आपने सुना नहीं। तो आपके पीछे पीछे मैं भी अंदर आ गया।" उस शख्स ने बड़ी सफाई से झूठ बोला। 


"हमारे..किंतु हमारे पीछे क्यों" निहारिका ने थोड़ा पीछे खिसकते हुए कहा


वो शख्स समझ गया कि निहारिका उससे डर रही है।


"आपको यहाँ नहीं आना चाहिए था। यहां आपको खतरा है" उसने शांत लहजे में कहा।


निहारिका को औरों द्वारा दी गई चेतावनियां याद आ गई और उसे कुछ कुछ विश्वास होने लगा उस शख्स पर।


"हमने यहां कुछ अजीब महसूस किया अभी।" निहारिका एक सांस में बोलती चली गई।


"हमें इस जगह से निकल जाना चाहिए"


"आप ठीक कह रहे हैं। पर अंधेरे में कुछ दिख नहीं रहा। हमारा फ़ोन भी पता नहीं कहाँ गिर गया वरना उसकी रोशनी में रास्ता ढूंढ लेते" निहारिका ने एक बार फिर तलाश जारी रखी।


"आप चिंता ना कीजिये। मेरी आँखें अंधेरे की अभ्यस्त हैं, मुझे सब दिखाई दे रहा है" उस शख्स ने पूरी निश्चिंतता से कहा।


निहारिका को हैरानी तो हुई पर उसने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि उसे यहाँ से जल्द से जल्द निकलना था। 


निहारिका उठी और दो कदम आगे बढ़ी होगी कि उसके पैर से कुछ टकराया। निहारिका ने पैर से उसे टटोला तो उसे वो फ़ोन जैसा लगा। निहारिका ने तुरंत उसे उठा लिया और उसका टोर्च चालू कर दिया। कमरा थोड़ी रोशनी से भर गया।


निहारिका ने इस बार उसे गौर से देखा। एक लंबा चौड़ा नौजवान जो शक्ल से किसी अच्छे खानदान का लग रहा था और जिसके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी वह उसके सामने खड़ा था। किंतु उसकी आंखे बार बार मिंच रही थी जैसे उसे रोशनी से हल्की समस्या हो रही हो।


लेकिन निहारिका ने रोशनी बन्द नहीं की और वो आगे बढ़ने लगी। रेंगने और गुर्राने जैसी कुछ और आवाजे आई तो इस शख्स ने निहारिका के हाथ से फोन छीन कर तुरंत वह रोशनी बंद कर दी। यह देखकर निहारिका दहशत भर गई और उसने उस शख्स का हाथ थाम लिया। 


निहारिका अनजाने डर से कांप रही थी। यह महसूस कर वो शख्स भावुक हो रहा था। 


उसने निहारिका का हाथ मजबूती से पकड़कर कहा " हम अंधेरे में हैं और यह जगह बिलकुल सुरक्षित नहीं है। आप मेरे साथ साथ आइए हम यहां से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ लेंगे।"


"पर अंधेरे में कैसे पता चलेगा रास्ता? कुछ दिखाई भी तो नहीं दे रहा।" निहारिका ने पूछा


"मेरी आँखें अंधेरे में देखने में अभ्यस्त हैं। आप चिंता ना करें।"


किंतु कैसे? निहारिका को अजीब लगा पर उसने इस बात पर इसीलिए भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि उसकी पहली प्राथमिकता वहां से बाहर निकल कर कुंवर साहब तक पहुंचना था…


जारी..

   24
4 Comments

shweta soni

30-Jul-2022 08:14 PM

Nice 👍

Reply

Swati chourasia

12-Jan-2022 07:31 PM

वाह बहुत ही अच्छी कहानी हर भाग के साथ उत्सुकता बढ़ती ही जा रही है 👌👌

Reply

Shalu

07-Jan-2022 01:57 PM

Nice

Reply